वांछित मन्त्र चुनें

सा॒कं जा॒ताः सु॒भ्वः॑ सा॒कमु॑क्षि॒ताः श्रि॒ये चि॒दा प्र॑त॒रं वा॑वृधु॒र्नरः॑। वि॒रो॒किणः॒ सूर्य॑स्येव र॒श्मयः॒ शुभं॑ या॒तामनु॒ रथा॑ अवृत्सत ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sākaṁ jātāḥ subhvaḥ sākam ukṣitāḥ śriye cid ā prataraṁ vāvṛdhur naraḥ | virokiṇaḥ sūryasyeva raśmayaḥ śubhaṁ yātām anu rathā avṛtsata ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सा॒कम्। जा॒ताः। सु॒ऽभ्वः॑ सा॒कम्। उ॒क्षि॒ताः। श्रि॒ये। चि॒त्। आ। प्र॒ऽत॒रम्। व॒वृ॒धुः॒। नरः॑। वि॒ऽरो॒किणः॑। सूर्य॑स्यऽइव। र॒श्मयः॑। शुभ॑म्। या॒ताम्। अनु॑। रथाः॑। अ॒वृ॒त्स॒त॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:55» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नरः) सत्य को पहुँचानेवाले मनुष्यो ! (सूर्य्यस्येव) सूर्य के जैसे (साकम्) एक साथ (जाताः) उत्पन्न और (सुभ्वः) शोभित (साकम्) साथ में (उक्षिताः) सींचे हुए (विरोकिणः) अनेक प्रकार की रुचि वर्त्तमान जिनमें वे (रश्मयः) किरण (प्रतरम्) अत्यन्त दुःख से पार करनेवाले व्यवहार को (आ) सब प्रकार (वावृधुः) बढ़ावें वैसे (चित्) भी मित्र होते हुए (श्रिये) शोभा वा धन के लिये प्रवृत्त हूजिये और जैसे (शुभम्) कल्याण को (याताम्) प्राप्त होते हुओं के (रथाः) सुन्दर वाहन आदि (अनु, अवृत्सत) पीछे वर्त्तमान हैं, वैसे सब के उपकार के पीछे वर्तिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! आप लोग सूर्य्य की किरणों के सदृश एक साथ ही पुरुषार्थ के लिये उद्यत हूजिये और जैसे कल्याण करनेवालों के रथों के पीछे भृत्यजन वर्त्तमान होते हैं, वैसे ही धर्म के पीछे वर्त्तमान हूजिये ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे नरः ! सूर्य्यस्येव साकं जाताः सुभ्वः साकमुक्षिता विरोकिणो रश्मयः प्रतरमा वावृधुस्तथा चित्सखायः सन्तः श्रिये प्रवृत्ता भवत यथा शुभं यातां रथा अन्ववृत्सत तथा सर्वोपकारमनुवर्त्तध्वम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (साकम्) सह (जाताः) उत्पन्नाः (सुभ्वः) ये शोभना भवन्ति (साकम्) सङ्गे (उक्षिताः) सिक्ताः (श्रिये) शोभायै धनाय वा (चित्) अपि (आ) (प्रतरम्) प्रकर्षेण दुःखात्तारकं व्यवहाराम् (वावृधुः) वर्धयन्तु (नरः) सत्यं नेतारः (विरोकिणः) विविधो रोको रुचिर्विद्यते येषु ते (सूर्य्यस्येव) (रश्मयः) किरणाः (शुभम्) कल्याणम् (याताम्) प्राप्नुवताम् (अनु) (रथाः) रमणीया यानादयः (अवृत्सत) वर्त्तन्ते ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यूयं सूर्यस्य रश्मय इव सहैव पुरुषार्थाय समुपतिष्ठध्वम्। यथा कल्याणकारिणा रथाननु भृत्या वर्त्तन्ते तथैव धर्ममनुवर्त्तध्वम् ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! तुम्ही सूर्याच्या किरणांप्रमाणे एकदम पुरुषार्थासाठी उद्यत व्हा व जसे कल्याणकर्त्यांच्या रथामागे सेवक असतात तसेच धर्मानुसार वागा. ॥ ३ ॥